Ayurvedic medicine ("Ayurveda" for short) is one of the world's oldest holistic ("whole-body") healing systems. It was developed more than 3,000 years ago in India.

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  Fri 03-May-2024
garbhini yoga

गर्भिणी योग

आज, एक बार फिर, मैं महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में लिखने के लिए मजबूर महसूस कर रही हूं। इसका कारण है ......... आज की महिलाओं की बढ़ती स्वास्थ्य समस्याए ......... जिसमें गर्भावस्था की समस्याएं महिला को बहुत परेशान करती हैं। जिससे महिला अपने शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और करियर सब कुछ खो देती है।  यह एक महिला के लिए दयनीय बात है।

कई सरल और आसान उपाय एक महिला को अपने स्वयं के स्वास्थ्य और बच्चे की  जिम्मेदारी निभाने मे मदद रूप हैं। यह एक आसान उपाय है ... योग और प्राणायाम ........ हमारे प्राचीन स्वास्थ्य ऋषि पतंजलि ने प्राणायाम और योगासन को गर्भधारण से लेकर बालक के जन्म तक के अलग अलग योग और प्राणायाम का विस्तृत रूप में वर्णन किया है।

प्रसव  के समय, कमर, जांघ, पेट की मांसपेशियां कार्य करती है। इन मांसपेशियों का लचिलापन प्रसव के दरमियान जरूरी है, अगर यह लचिलापन पर्याप्त मात्र मे नहीं है तो, योनिद्वार पर एक कट लगाना पड़ता है, जिसे एपिझिओटोमी कहा जाता है।  । गर्भावस्था के दौरान, फेफड़ों पर दबाव के कारण पेट का आकार लगातार बढ़ता रहता है और गर्भिणी स्त्री पूरी तरह से सांस नहीं ले सकती है। इसी तरह की स्थिति बच्चे के जन्म के दौरान होती है। प्रसव के दौरान उसे सांस लेने में भी कठिनाई होती है, जिसके कारण बच्चे को ऑक्सीजन की कमी होती है। यह सब हम योगासन और प्राणायाम से बचा सकते हैं। योगासन और प्राणायाम के माध्यम से शरीर के सभी अंगों की मांसपेशियों में भी लचीलापन बढ़ता है। प्राणायाम से महिला के फेफड़ों की क्षमता भी बढ़ती है, जिससे प्रसव के दौरान वह शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन की आपूर्ति करने के लिए पर्याप्त सांस ले सकती है। ताकि बच्चे को प्रसव के दौरान ऑक्सीजन की कमी होने से बचाया जा सके।

इसके साथ योग और प्राणायाम का सबसे बड़ा लाभ यह है कि गर्भावस्था के दौरान अनावश्यक वजन नहीं बढ़ता है। बच्चे के जन्म के बाद होने वाली समस्याओं से बचा जा सके। भले ही गर्भावस्था आईवीएफ या आईयूआई के माध्यम से हो, तो भी आप योग और प्राणायाम कर सकती हो। यह शिशु और माँ के स्वास्थ्य की रक्षा करता है।