आज के आधुनिक पॄष्ठभूमि वाले समाज मे नवीनत्तम आहार-विहार प्रणाली ने शारिरिक रोग और उनके उपद्रवों से लडने की हमारी क्षमता को तो कम किया ही है,वही इसी लाईफ़ स्टाइल ने अधिक कष्ट्प्रद मानसिक रोगो की प्रतिशतता मे नकारात्मक आयाम स्थापित किया है । मेरी व्यक्तिगत राय है कि हमारी मानव सभ्यता का विनाश शारिरिक रोगो/किसी बाह्या शक्ति/आपदा से नहीं,अपितु मानसिक रोगो से ही होगा।
विकॄत आहर-विहार ने हमें ईर्ष्या, द्धेष,अहं, असन्तोष, लोभ, भय, क्रोध, सुख-दुख,प्रशन्सा,निराशा,असहनशीलता,अशुद्द वाणी जैसे भावो/रोगों से हमें ग्रस्त कर हमारी मानवता/huminity को नष्ट कर हमें, शारीरिक(physically hostile), मानसिक(mentally hostile), समाजिक(socially hostile) या अध्यात्मिक(spiritually hostile) रूप से अत्याधिक आक्रामक बना दिया है। जिसके फलस्वरूप हम अन्य समाज ,धर्म ,देश, सभ्यता, यहां तक की व्यक्तिविशेष के प्रति अधिक रुढीवादी और अत्याल्प उदारवादी बन गये हैं । जिसका परिणाम ये है कि हमें, दूसरो के सुख-शुभ से अधिक कष्ट मिलता है और जो हमारे आत्मिक पतन का मूल कारण बन रहा है। इस सन्दर्भ में आवश्यक है कि हमें शारीरिक रोगो के अपेक्षा में अधिक जागरुकता से मानसिक रोगों की चिकित्सा पर अधिक उर्जा और ध्यान केन्द्रित करना चाहियें। और इसकी शुरुआत हम स्वयं के प्रयासो से निम्नवत करें-
- सूर्योदय से पूर्व उठकर यथाशक्ति १-२ गिलास गुन-गुना पानी पीये। तदोपरान्त नित्यकर्म कर १-२ घन्टॆ योग, व्यायाम, रस्सी कूद्ना, या दौडना चाहियें।
- नास्ते से पूर्व १५ मिनट के लिये घर के छॊटॆ-२ काम जैसे झाडू लगाना,बिस्तर,पर्दे सही करना,कपडॊ की तय-प्रेस-सफ़ाई और अन्य कर्यो को करते हुए समय को व्यवस्थित करें। तदोपरान्त स्नान कर स्वच्छ मन से अपनी श्रधा,धर्म अनुसार अपने इष्ट देव / माता-पिता का पूजन या स्मरण करें।
- अपने वयवसाय या दिनचर्या से भिन्न नित्य एक समाजिक/विकासकारी एवं चारों जगतो के लिये हितकारी लक्ष्य को निर्धारित कर उसे पूर्ण करने का प्रण लें।
- क्रोध- क्रोध आने कि दशा में मौन धारण कर लम्बी सासें लेते हुए अशुद्ध-वाणी/गाली-गलौच/अपशब्द कह्ने से बचते हुए,विग्रह स्थान से दूर चले जाये और अपना ध्यान साफ़-सफ़ाई, तीव्र व्यायाम ,दौड पर केन्द्रित करें ।
क्रोध आने पर, चिल्लाकर बाते ना करें ,य़ा हिसांत्मक प्रवर्ति का सहारा ना लें। क्योंकि ये क्रियायें जहां आपके आत्मिक पतन का कारण बनती है ,वही दूसरे व्यक्ति विशेष को उकसाती है जो स्थिति को अधिक विग्रह वाली बना देती हैं। क्रोध शान्त होने कि दिशा तक ऐसा जारी रखें।
- लोभ-असन्तोष – इस रोग के होने पर अपने निम्न जीवन स्तर के लोगों के करीब जाने का प्रयत्न करें और हो सकें तो उनके जीवन की दैनिक समस्यायों का निस्तारण करने का प्रयत्न करें और सीमित साधनो मे खुश रहने की योग्यता को अपने जीवन मे ढालने का प्रयत्न करें।
- ईर्ष्या-द्देष - जिस व्यक्ति विशेष/समुदाय से आप ईर्ष्या - द्देष करते हो, सर्वप्रथम उनके ५ गुणॊ का स्मरण करे, और फिर मनचाही आलोचना करें ।
- प्रसन्शा - अपनी उपलब्धियों को लेकर अति उत्तसाहित ना हों ,और ऐसे लोगों से दूर रहें जो आपकी निरर्थक अति प्रंसन्सा करते हों । क्योंकि ये भाव आपमेम अहं की उत्पति करता है।
- निराशा-दुख – दुख की अवस्था में अपने जीवन के सुख के समय से तुलना करे तो आप पायेगें कि वर्तमान अवस्था बहुत अल्प समयावधि वाली है ,जो शीघ्र ही नष्ट हो जायेगीं । अतः गम्भीर स्थिति में न पहुंचे और सामान्य रहें। वही निराशा की स्थिती में स्वय़ं को न कोशे बल्कि आशावादी , सफ़ल व्यक्ति एवं धनात्मक साहित्य,चलचित्र,सत्सगं का अनुशरण करें,उनसे अपनी भावी योजनाओं को तैयार करें ।
- भय – भय, डिप्रेसन का मूल कारण है, इसलिये इससे बचने के लिये अपने डर के संबन्ध में अतिसमीप परिवारिक सदस्य/विश्वसनीय मित्र/ से चर्चा करें और समाधान निकालने का प्रयत्न करें ।
- अहं - वर्तमान परिवेश में अहं सबसे बडा मनसिक रोग है,जो हमारे परिवार/समाज को तोडता जा रहा है। यह हमारे विशेष समाजिक,आत्मिक विकास के सभी रास्ते बन्द कर देता हैं । इसके निराकरण के लिये दूसरो के सामने झूकने, स्वयं को अल्प नी समझकर , दूसरो के उपकारो का स्मरणं करना चाहिए। चाहे आप उनसे शारीरिक/मानसिक/आर्थिक/शैक्षणिक/या अन्य किसी भी रूप मे अधिक सक्षम एवं योग्य ही क्यों न हों। जीवन में अपने आप को छात्र के रूप में स्वीकार करें ।क्योकिं निक्रष्ट्ता भी कहीं न कहीं गुण य़ुक्त होती हैं ।
अधिक महगें कपडॆ,मोबाईल,फास्ट-फ़ूड,रहन-सहन,निरर्थक अनावश्यक सोशल साईट्स का उपयोग, आपको समाजिक और वास्तविक धरातल से दूर करता है और आप रज-तम दोष युक्त वाले हो जाते हैं, जहां तक हो सकें इनसे बचें ।
Dr. Saket Kumar Garg
Consultant Ayurveda PhysicianSanjivani Ayurveda, Saharanpur (u.p.)